यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
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तेरा हाल मुझसे जो पूछा किसी नेन मैं बोल पाया ना तू अब रही है न घर-घर लगे है ना दिल ही थमे है कि जिस रोज से माँ मेरी चल बसी है अभी आ रही हैं तुम्हारी सदाएंयहीं पर कहीं पर तू जैसे खड़ी है न उसने बुलाया ना आवाज़ ही दी पता तब चला घर में माँ ना रही है -रोहित कुमार 'हैप्पी'
[माँ को सादर समर्पित]
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