बंदर
आज़ादी के समय देश में हर तरफ दंगे फैले हुए थे। गांधी जी बहुत दुखी थे। उनके दुख के दो कारण थे - एक दंगे, दूसरा उनके तीनों बंदर खो गए थे। बहुत तलाश किया लेकिन वे तीन न जाने कहां गायब हो गए थे।
एक दिन सुबह अपनी प्रार्थना सभा के बाद गांधी जी शहर की गलियों में घूम रहे थे कि अचानक उनकी निगाह एक मैदान पर पड़ी, जहां बंदरों की सभा हो रही थी।
उत्सुकतावश गांधीजी करीब गए। उन्होंने देखा कि उनके तीनों बंदर मंचासीन हैं। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। प्रसन्न मन वे उन तीनों के पास पहुंचे।
गांधीजी, 'अरे तुम लोग कहां चले गए थे, मैंने तुम तीनों को कितना ढूंढा? यहां क्या कर रहे हो?'
बंदर बोले, 'गांधीजी, हम लोगों ने आपको और आपके सिद्धान्त दोनों को त्याग दिया है। यह हमारी पार्टी की पहली सभा है। देश आजाद हो गया। अब आपकी और आपके सिद्धान्तों की देश को क्या जरूरत?'
गांधी जी हतप्रभ से खड़े रह गए।
आज भी खड़े हैं ठगे से, मूक इस देश में हो रहा तमाशा देखते। अपने शहर में ढूंढिएगा कहीं न कहीं मिल जाएंगे मूर्तिवत खड़े हुए।
- बृजेश नीरज
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उत्तर की तलाश
[लघु-कथा]
एक मित्र ने पूछा, "तुम कब पैदा हुए थे ?"
"शायद तब जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे, नहीं शायद गुलजारी लाल नन्दा या इंदिरा में से कोई प्रधानमंत्री था।" मैंने उत्तर दिया।
"तुम्हें इतना भी याद नहीं।"
"बच्चा था न- दुनियादारी, राजनीति, से दूर।"
"अब क्या हो?"
"अब भी एक इंसान हूं-छल, कपट, राजनीति, माया-मोह में जकड़ा।"
"मगर इंसान हो ?"
"हां।"
"पर कैसे ? इंसानों के कौन से लक्षण हैं तुममें ?"
मैं चुप रहा, कुछ सोचा फिर उत्तर की जगह मैंने एक प्रश्न दाग दिया, "तुम क्या हो ?" मित्र खामोश था । वह शायद जानता था कि आगे फिर मैं उसका अगला प्रश्न ही दोहराने वाला हूँ ।
एक सीधे प्रश्न के उत्तर की तलाश में हम देर तक एक दूसरे को देखते रहें | आज भी उत्तर तलाश रहे हैं कि इंसानों के कौन से लक्षण हैं हममें ?
- बृजेश नीरज
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