जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।
गिलहरी का घर | बाल कविता (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:हरिवंशराय बच्चन

एक गिलहरी एक पेड़ पर
बना रही है अपना घर,
देख-भाल कर उसने पाया
खाली है उसका कोटर ।

कभी इधर से, कभी उधर से
कुदक-फुदक घर-घर जाती,
चिथड़ा-गुदड़ा, सुतली, तागा
ले जाती जो कुछ पाती ।

ले जाती वह मुँह में दाबे
कोटर में रख-रख आती,
देख बड़ा सामान इकट्ठा
किलक-किलककर वह गाती ।

चिथड़े-गुदडे़, सुतली, धागे ---
सब को अन्दर फैलाकर,
काट कुतरकर एक बराबर
एक बनायेगी बिस्तर ।

फिर जब उसके बच्चे होंगे
उस पर उन्हें सुलायेगी ,
और उन्हीं के साथ लेटकर
लोरी उन्हें सुनायेगी


-हरिवंशराय बच्चन

[नीली चिड़िया - बच्चन रचनावली से]

 

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