जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
गिलहरी  (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

कहते जिसे गिलहरी हैं सब ।
सभी निराले उसके हैं ढब ॥

पेड़ों से नीचे है आती ।
फिर पेड़ों पर है चढ़ जाती ॥

कुतर कुुतर फल को है खाती ।
बच्चों को है दूध पिलाती ॥

उसकी रंगत भूरी कारी ।
आँंखों को लगती है प्यारी ॥

होती है यह इतनी चंचल ।
कहीं नहीं इसको पड़ती कल ॥

उछल कूद में है यह जैसी ।
दौड धूप में भी है वैसी ॥

बैठी इस धरती के ऊपर ।
दोनों हाथों में कुछ ले कर ।।

जब वह जल्दी से है खाती ।
तब है कैसी भली दिखाती ॥

चिकना चिकना रोआँ इसका ।
लुभा नहीं लेता जी किसका ।।

मत तुम इसको ढेले मारो ।
जा पूरा इतना बात बचा ॥

कहीं इसे जो लग जावेगा ।
तो इसका जी दुःख पावेगा ॥

अब तक सब ने है यह माना ।
जी का अच्छा नहीं दुखाना ॥

- अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

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