मैया, कबहि बढ़ैगी चोटी? किती बार मोहि दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी। तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्नै है लाँबी-मोटी। काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै, नागिनी सी भुइँ लोटी। काँचौ दूध पियावत पचि-पचि, देति न माखन-रोटी। सूरज चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी।
(2) तेरैं लाल मेरौ माखन खायौ। दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढूँढ़ि-ढँढ़ोरि आपही आयौ। खोलि किवारि, पैठि मंदिर मैं, दूध-दही सब सखनि खवायौ। ऊखल चढ़ि, सींके कौ लीन्हौ, अनभावत भुइँ मैं ढरकायौ। दिन प्रति हानि होति गोरस की, यह ढोटा कौनैं ढँग लायौ। सूर स्याम कौं हटकि न राखै तैं ही पूत अनोखौ जायौ।
[सूरदास के पद ] |