अकबर से लेकर औरंगजेब तक मुगलों ने जिस देशभाषा का स्वागत किया वह ब्रजभाषा थी, न कि उर्दू। -रामचंद्र शुक्ल
हुल्लड़ मुरादाबादी नहीं रहे  (विविध)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

मुरादाबाद, 13, जुलाई, 2014। हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी का शनिवार को दोपहर बाद मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। 72 वर्षीय हुल्लड़ लंबे समय से अस्वस्थ थे।

आपने 'क्या करेगी चांदनी', 'जिगर से बीड़ी जला ले', 'मैं भी सोचूं, तू भी सोच' 'इतनी ऊंची मत छोड़ो', 'अच्छा है पर कभी कभी', 'यह अंदर की बात है', 'तथाकथित भगवानों के नाम', 'दमदार और दुमदार दोहे', 'हुल्लड़ हजारा', 'हुल्लड़ का हुल्लड़', 'हज्जाम की हजामत' इत्यादि हास्य पुस्तके लिखी।

हुल्लड़  मुरादाबादी ने दो फिल्मों, 'संतोष' व 'बंधनबाहों' में अभिनय भी किया।

हुल्लड़  मुरादाबादी विभिन्न सम्मानों से अलंकृत थे जिनमें हास्य रत्‍‌न अवार्ड, काका हाथरसी पुरस्कार और महाकवि निराला सम्मान,कलाश्री अवार्ड, ठिठोली अवार्ड, टीओवाईपी अवार्ड, अट्टहास शिखर सम्मान सम्मिलित हैं।

हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म जन्म 29 मई 1942 को पाकिस्तान के शहर गुजरांवाला में हुआ था। आपका वास्तविक नाम सुशील कुमार चड्डा था। विभाजन  के समय आपके परिजन भारत आकर मुरादाबाद में बस गए थे। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कवि-सम्मेलनों में सुप्रसिद्ध हुल्लड़ मुरादाबादी को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भी सम्मानित किया था।

हुल्लड़ 1977 में परिवार के साथ मुंबई चले गए लेकिन मुरादाबाद से उनका स्नेह बना रहा। 2000 में मुरादाबाद छोड़कर वह पूरी तरह मुंबई में बस गए। हुल्लड़ 6 वर्षों से मधुमेह व थायराइड से पीड़ित थे।

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