कथाकार संजीव को अंजना सहजवाला साहित्य सम्मान रिपोर्ट – राहुल पांडे
सुविख्यात कथाकार व उपन्यासकार संजीव को उनके बहुचर्चित उपन्यास 'रह गईं दिशाएं इसी पार' के लिए दिल्ली के गाँधी शांति प्रतिष्ठान में 21 सितंबर 2013 को पहला 'अंजना सहजवाला साहित्य सम्मान' दिया गया।
सम्मान समारोह की अध्यक्षता राजेंद्र यादव ने की व मैनेजर पाण्डेय इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। आलोचक रोहिणी अग्रवाल विशिष्ट अतिथि के रूप में मंच पर थीं। इनके अतिरिक्त दिनेश कुमार व विवेक मिश्र का भी समारोह में सानिध्य रहा। प्रसिद्ध शिक्षाविद व समाजसेवी डॉ. अंजना सहजवाला की समृति में स्थापित 'अंजना: एक विचार मंच' पिछले कुछ वर्षों से निरंतर साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन करता आ रहा है। अब तक दलित विमर्श, हिंदी कहानी, हिंदी कविता, स्त्री विमर्श, आलोचना आदि पर कई विचारोत्तेजक सभाएं आयोजित की जा चुकी हैं। इस वर्ष से मंच ने 'अंजना सहजवाला साहित्य सम्मान' आरम्भ किया है जिसके अंतर्गत प्रतिवर्ष कुछ उत्कृष्ट साहित्यकारों को सम्मान स्वरुप रु. 5,100/- की नगद राशि एक शाल व एक मोमेंटो प्रदान किया जाएगा।
भारी वर्षा के बावजूद संजीव के साहित्य के प्रशंसक समारोह में उपस्थित थे।
प्रारंभ में 'अंजना: एक विचार मंच' के संस्थापक अध्यक्ष प्रेमचंद सहजवाला ने कहा कि संजीव जी ग्रामीण परिवेश के सिद्धहस्त लेखक तो हैं ही, प्रस्तुत उपन्यास में उन्होंने विज्ञान की प्रगति की अंधी दौड़ की भी अच्छी खबर ली है। विज्ञान खुद किस क़दर विश्व के महा पूंजीपतियों की गिरफ़्त में है तथा विज्ञान खुद मानवीय संबंधों को किस तरह प्रभावित कर रहा है, इस का सशक्त लेखा जोखा इस उपन्यास में है। भूमंडलीकरण के दुष्प्रभाव के तहत कोई विशाल सा ट्रॉलर समुद्र में एक साथ असंख्य मछलियाँ हड़प कर गरीब मछेरों की रोजी रोटी तक हड़प लेता है। सहजवाला के अनुसार यह उपन्यास अपनी किस्म का अनूठा उपन्यास है।
कथाकार विवेक मिश्र ने कहा कि 'रह गईं दिशाएं इसी पार' आने वाले समय का उपन्यास है। और इसे समझने के लिये पहले पचास पृष्ठ बेहद ध्यान से पढ़ने ज़रूरी हैं। दिनेश कुमार ने संजीव की लेखनी की प्रशंसा में कहा कि संजीव जैसे सशक्त साहित्यकार पर पूरी एक पुस्तक लिखी जा सकती है।
अपनी रचनाधर्मिता पर बोलते हुए संजीव ने कहा कि शोध का संस्कार विज्ञान से ही मिला है।
विशिष्ट अतिथि रोहिणी अग्रवाल का मानना है कि संजीव का यह उपन्यास सटीक समय पर आया है।
मुख्य अतिथि मैनेजर पाण्डेय ने चुटकी लेते हुए कहा कि उपन्यास राजेंद्र यादव के विरोध में लिखा गया है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में राजेंद्र यादव ने कहा कि यह अपने किस्म का पहला उपन्यास है जिसका नामकरण उन्होंने ही किया है।
कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कवि समालोचक सुशील सिद्धार्थ ने किया तथा अंत में कवि अनिल वर्मा 'मीत' ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।
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छायाचित्र - निखिल गिरी आनन्द
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