मैं नहीं समझता, सात समुन्दर पार की अंग्रेजी का इतना अधिकार यहाँ कैसे हो गया। - महात्मा गांधी।
अंडमान-निकोबार के साहित्य-सेवी व्यास मणि त्रिपाठी  (विविध)  Click to print this content  
Author:डॉ शिबन कृष्ण रैणा

अंडमान-निकोबार की राजधानी पोर्ट-ब्लेयर की आबादी लगभग डेढ़ लाख है। साफ-सुन्दर शहर है और हर तरह की आधुनिकतम सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कुछेक वर्ष पूर्व इन्टरनेट की सुविधा यहाँ आ जाने से यह अलग-थलग पड़ा द्वीप मेनलैंड से जुड़ गया है। पर्यटन स्थल होने के कारण होटलों और विश्राम गृहओं की बहुतायत है। लगभग हर प्रदेश और जाति-धर्म के लोग यहाँ प्रेमभाव से रहते हैं। बंगला-भाषियों की संख्या कुछ ज़्यादा बताई जाती है।

हिंदी भाषा हर कोई समझता है और हिंदी के साइनबोर्ड यत्रतत्र देखने को मिल जाते हैं।

आज कुछ ऐसा योग बना कि यहाँ पोर्ट ब्लेयर के सरकारी जवाहरलाल नेहरू कॉलेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डा व्यासमणि त्रिपाठीजी से मुलाक़ात हुई। वे मुझे पहले से जानते थे और जैसे ही उन्हें यह ज्ञात हुआ कि मैं इन दिनों पोर्ट ब्लेयर में हूँ तो समय निकल कर मुझ से मिलने आए। कृष्ण-भक्त कवि "परमनंद" पर लिखी और साहित्य अकादमी, दिल्ली से हाल ही में प्रकाशित अपनी पुस्तक की एक प्रति मुझे भेंट की।

त्रिपाठीजी की साहित्य-सेवाएं खूब हैं। इनकी कविता, कहानी, निवन्ध, आलोचना, लोक-कथा आदि की 34 पुस्तकें प्रकाशित ही चुकी हैं। जिनमें साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित “जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'”, “नन्ददास”, “अण्डमान का हिन्दी साहित्य” और “अण्डमान तथा निकोबार की लोक कथाएँ” तथा प्रकाशन विभाग, नयी दिल्ली से प्रकाशित “भारतीय स्वाधीनता-संग्राम और अण्डमान” विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

सम्मान भी इन्हें खूब मिले हैं। यथा: दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में 'विश्व हिन्दी सम्मान।' मध्य प्रदेश साहित्य अकादेमी का 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचना' पुरस्कार। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का "रामविलास शर्मा सर्जना' पुरस्कार। हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज का 'महावीर प्रसाद द्विवेदी आलोचना' पुरस्कार। विद्या वाचस्पति और विद्यावारिधि की मानद उपाधियों सहित अन्य दर्जनों पुरस्कार एवं सम्मान इन्हें प्राप्त हैं।

इतने सारे मान-सम्मानों से समादृत होते हुए भी त्रिपाठीजी सादगी और विनम्रता के धनी हैं। चिरंजीवी रहें, यही कामना है।

-डॉ० शिबन कृष्ण रैणा
 ई-मेल : skraina123@gmail.com,

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