भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
लिखने और छपने के टोटके! (विविध)  Click to print this content  
Author:प्रभात गोस्वामी

रचनाओं के निरंतर अस्वीकृत होने की पीड़ा से त्रस्त लेखकजी को अब किसी पर विश्वास नहीं रहा। हारकर वह फिर से अंधविश्वासों पर यकीन करने को मजबूर हो रहे हैं। खिलाड़ियों से लेकर नेता लोग सब अंधविश्वासों का दामन थामे हुए हैं। आजकल किसी पर भी विश्वास करना मुश्किल हो गया है! तभी तो लोग फिर से टोने-टोटकों पर भरोसा करने लगे हैं।

लेखक जी पीड़ा यही है कि दिन-रात लिखते रहे। हर दिन (ई)मेल मिलाप करते रहे। देश की राजधानी से लेकर चारों दिशाओं से छपने वाले अख़बारों में रचनाएँ भेज रहे हैं। पर परिणाम अस्वीकृति के सिवा कुछ भी नहीं। उनको यही लगता है कि किसी ने उन पर टोना कर दिया है। उनके पास माया की कोई कमी नहीं। फिर भी लिखने-छपने का मोह नहीं छूट पा रहा!

हार कर वे एक ज्योतिषी की शरण में गए। तंत्र-मंत्र,ज्योतिषीय उपचार की उम्मीद में पग पखराई की। बड़े दुखी होकर कहा, 'आजकल हर आदमी लेखक है। सब जमकर छप रहे हैं। बड़े लेखक तो कुछ लिखने से पहले ही छप जाते हैं! फिर मेरी कुंडली में ऐसे कौन- से पापी ग्रह बैठे हैं जो मुझे छपने से रोक रहे हैं?'

बाबा ने आँखें बंद कीं। कुछ देर अपने आप में खो गए। फिर बोले, 'बेटा तेरी कुंडली में कई मठाधीशों की कुदृष्टि पड़ रही है। हर कोई तेरी शान-ओ-शौकत की वजह से तुझे अपने मठ में मथना चाहता है। सारे एक-दूसरे को रोक रहे हैं। यही वजह है कि तेरी कोई भी रचना किसी अख़बार या पत्रिका में नहीं छपने दे रहे! चिंता न कर, करते हैं कोई उपाय। '

उन्होंने फिर आँखें बंद कीं। आजकल हर समस्या पर ऑंखें बंद करना ही उसके हल की चिंता से मुक्त करता है! बोले, 'बेटा, सबसे पहले किसी एक मठाधीश की शरण में जाकर 'गंडा बंधन' करना होगा। इसके बाद बिना किसी कड़ी परीक्षा के तुम्हारा धंधा (लेखन) सारे बंधन से मुक्त हो जाएगा! तुम लिखने में गुड़गोबर भी कर दोगे तो गुरुजी गुड़ की मिठास और गोबर से होने वाले फायदे गिनाकर उसे श्रेष्ठ रचना साबित कर देंगे। साहित्य में भेड़ चाल का चलन भी खूब है। एक बार गुरुजी ने गोबर को गुड़ बता दिया तो सारे लोग 'पार्टी लाइन' की तर्ज़ पर उसकी मिठास में पगी तारीफ ही परोसेंगे। तुम लिखने में कचरे के ढेर खड़े करोगे तो गुरुवर उसमें से बिजली पैदा करते हुए साहित्य के आँगन को रोशन करवा देंगे।'

'लव,वॉर और लेखन में समय का बहुत महत्त्व है। शुभ मुहूर्त में भेजी गई रचना अवश्य छपती है। अखबार और पत्रिका के कार्यालयों में सबसे पहले रचना भेजने के लिए सुबह जल्दी उठने की आदत डाल। सब जगह आजकल 'पहले आओ,पहले पाओ', की नीति चल रही है। ध्यान रहे, ज्यादातर लेखक निशाचर होते हैं। देर रात तक जागते हैं! सो सुबह उनके उठने से पूर्व ही अपनी रचना को डिस्पेच कर। रचना के ऊपर मठाधीश जी के चरणों की धूल चिपका। फिर देख कमाल!'

- प्रभात गोस्वामी, भारत

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