“यार मोना समझा करो बॉस को क्या बोलूँ कि मेरी वेडिंग ऐनिवर्सरी है इसलिए टूर पर नहीं जा सकता!" सौरभ की आवाज़ थी।
“हाँ! क्यों? शर्म आती है! यह दिन सिर्फ़ मेरा है और मेरा हक़ है कि तुम अपना दिन मेरे साथ स्पेंड करो या 12 साल 2 बच्चों के बाद अब वो बात नहीं रही, मन भर गया!" मोना ने उलाहना देते हुए कहा।
“क्या बोले जा रही हो? यार काम से सब कुछ है अगर ये कॉन्ट्रेक्ट मिल गया तब सारा बोनस तुम्हारा और मैं शनिवार दोपहर तक आ जाऊँगा 14 की जगह 15 को मना लेंगे...."
बहस होती गयी आख़िर सौरभ कमरे में सोने चला गया।
थोड़ी देर टीवी पर चैनल अदल-बदल मोना भी सो गयी।
मोना उदास मन से सुबह बच्चों को बस स्टॉप छोड़ के दूध लेने चल पड़ी रास्ते में आरज़ू मिली।
“क्या हाल है मोना?" आरज़ू ने पूछा।
“सब ठीक तुम कहाँ चल दी, सुबह-सुबह?" मोना ने कहा।
“दरगाह जा रही हूँ, आज हमारी वेडिंग ऐनिवर्सरी है। अब मेजर ख़ान LOC पर है, उनकी सलामती का नेग देने जा रही हूँ। वो है तो हम है, अच्छा लेट हो जाऊँगी। शाम को पार्क में मिलते है। कहकर आरज़ू आगे बढ़ गयी।
मोना ने तेज़ी से क़दम घर की ओर बढ़ाए, सौरभ को चाय के साथ एक गुलाब देते हुए बोली, “कौनसे कपड़े ले जाने है? पैकिंग कर दूँगी।" खटे हुए उसने सौरभ के गले में अपनी बाँहें डाल दी।
-शिवानी खन्ना |