अकबर से लेकर औरंगजेब तक मुगलों ने जिस देशभाषा का स्वागत किया वह ब्रजभाषा थी, न कि उर्दू। -रामचंद्र शुक्ल
चांदी का चमचा | बालकथा (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:चांद वर्मा

गंगा के किनारे तेजभानु राजा की नगरी थी। राजा बहुत गुणी और तेजस्वी था। उसके दरबार में अनेकों प्रखर बुद्धि वाले विद्वान थे जिनपर राजा को बहुत गौरव था । यूं तो सभी एक से बढ़ कर एक योग्य पंडित थे परन्तु दीर्घ बुद्धि नाम का विद्वान अपनी विलक्षण बुद्धि के कारण सब जगह विख्यात था।

एक बार लंका द्वीप के सम्राट ने अपना दूत (संदेश वाहक) तेजभानु के दरबार में भेजा। एक खाली मटका और सम्राट का पत्र दूत ने राजा को दिया जिसमें लिखा था-सुना है आपके पास ऐसे गुणी-ज्ञानी हैं जिनके पास अक्ल के खजाने हैं। हम एक खाली मटका आपके पास भेज रहे हैं, इसमें कुछ अक्ल भरवा कर हमारे पास भिजवा दीजिए। पत्र सुन कर सारे दरबारी हैरान रह गए कि यह भी कोई तुक की बात हुई। अक्ल क्या ऐसी चीज है जिसे चाहे जितना मटके में भर कर भेजा जाए? सवाल का जवाब तो देना ही चाहिए, नहीं तो राजा की मान हानि के साथ विद्वानों का अनादर भी हो जाएगा।

दीर्घ बुद्धि ने आगे बढ़ कर राजा से कहा कि आप दूत को कहिए कि मटका यहीं हमारे पास छोड़ जायें क्योंकि अक्ल को मटके में भरने के लिए कुछ देर लगेगी। मैं रोज थोड़ी-थोड़ी अक्ल इसमें डालता रहूंगा। जब यह पूरा भर जाएगा तो सम्राट के पास भिजवा देंगे।

अब दीर्घ बुद्धि ने बाग में से एक बेल कद्दू सहित निकाल कर उसे मटके में रख दिया और हर रोज उसमें पानी डालते ताकि कद्दू बढ़ता रहे। धीरे-धीरे कद्दू मटके के बराबर बड़ा हो गया। उसके पत्ते, डंठल बाहर निकल आए जिन्हें माली को बुलवा कर कटवा दिया और मटके का मुँह गीले कपड़े से अच्छी तरह से लपेट कर उसे बंद कर दिया। ढ़क लपेट कर जब मटका तैयार हो गया तो राजा ने एक पत्र सम्राट को लिखा कि मटके में अक्ल भर कर आपके पास भेज रहे हैं, पर यह मटका इतने दिन हमारे पास रहने के कारण, हमें बहुत पसन्द है। अक्ल निकाल कर मटका हमें भेज दें तो आपकी मेहरबानी होगी। आशा है, आप निराश नहीं करेंगे।

पत्र पढ़ कर लंका द्वीप सम्राट और दरबारी सब हँस पड़े और विद्वानों की बुद्धि की सराहना करने लगे।

-चांद वर्मा

[आकाशवाणी रोहतक से प्रसारित ]

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