राष्ट्रभाषा के बिना आजादी बेकार है। - अवनींद्रकुमार विद्यालंकार।
साहसी कुंग (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार हैप्पी

एक समय की बात है कि चीन में एक ‘कुंग' नामक बाल भिक्षु था। एक बार वह अपने अन्य भिक्षु साथियों के साथ बौद्ध विहार के खेतों में धान काट रहा था। इसी बीच कुछ चोर-लुटेरे खेत में आ पहुँचे और बलपूर्वक धान की फसल को उठाने लगे। उन्हें देखकर सब भिक्षु डरकर भाग निकले पर कुंग खेत में ही डटा रहा।

उन लुटेरों में से एक ने जब 'कुंग' को खड़े देखा, तो पूछा, 'तुम क्यों नहीं गए? तुम्हें डर नहीं लगता?'

कुंग ने निडरता से उत्तर दिया, 'नहीं! मुझे किसी से डर नहीं लगता।'

वह लुटेरों को कहने लगा, 'ले जाना ही चाहते हो तो सारी फसल उठा ले जाओ। ...पर भाई पहले जन्म में दान न देने का ही तो यह फल है कि तुम इस जन्म में दरिद्र हुए। अब इस जन्म में तुम दूसरों की चोरी करते फिरते हो, अगले जन्म में इससे क्या-क्या दुःख पाओगे, मुझे तो यही सोचकर दुःख हो रहा है।”

यह कह, कुंग खेत छोड़ अपने साथियों के पीछे विहार की ओर चल दिया। उसने पीछे मुड़कर भी न देखा। उसकी बातों का चोरों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे बिना फसल उठाए खेत से लौट गए। उन्होंने धान का एक दाना तक छुआ भी नहीं।

'कुंग' के साहस की विहार में चर्चा होने लगी और सभी उसकी प्रशंसा करने लगे।

आप जानते हैं, यह 'कुंग' नाम का बच्चा कौन था? आगे चलकर यही बालक 'फ़ाहियान' के नाम से विश्वविख्यात हुआ।

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

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