जून का महीना था। इतवार के दिन मैं काम से छुट्टी लेता था। छुट्टी के दिन सुबह-सुबह गाँव में टहलने की मेरी आदत थी। अपनी आदत के मुताबिक मैं घर से निकला था। गाँव के बाहर पहाड़ों पर छोटी छोटी आकृतियाँ दिखाई दे रही थी। वैसे तो यह जगह अक्सर सुनसान रहती थी। मैं पहाड़ की तरफ निकल गया और वहाँ पहुँचने पर देखा कि छोटे बच्चे कीचड़ के लड्डू बना रहे थे। डॉक्टर होने के कारण मुझसे रहा नहीं गया। आदत के अनुसार बच्चों को हिदायते देने लगा। कीचड़ से सने उनके शरीर को देखकर, उनको डाटने भी लगा।
मैंने तेज़आवाज में उन्हें अपने-अपने घर जाने को कह दिया। उसी समय एक छोटा लड़का सामने आकार कहने लगा- 'अंकल, यह लड्डू नहीं हैं, इसे सीड बॉल कहते हैं। हमारी टीचर कहती है, बारिश के मौसम में हमें पेड़ लगाने चाहिए। पेड़ हमे फूल, फल, छाया और ऑक्सीज़न देते हैं। पर्यावरण के संतुलन को बनाएँ रखने के लिए पेड़ों का होना बेहद जरूरी हैं। नहीं तो हमे कई समस्याओं से लड़ना पड़ सकता है। इसीलिए हम इस उजड़े पहाड़ पर पेड़ लगाना चाहते हैं।'
सोचा, काश! इन बच्चों की तरह मैंने भी बचपन में यह काम किया होता तो आज यहाँ हरे-भरे पेड़ होते।
मुझे अपने आप पर शर्म महसूस हुई।
कुछ देर मैं बच्चों को देखता रहा। फिर मैं भी उन्हीं में से एक बनते हुए, सीड बॉल बनाकर खेलने लगा।
प्रो. मनोहर जमदाडे ई-मेल : mjamdade@ymail.com |