हिंदी का पौधा दक्षिणवालों ने त्याग से सींचा है। - शंकरराव कप्पीकेरी
हिस्से का दूध | लघुकथा (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:मधुदीप

उनींदी आँखों को मलती हुई वह अपने पति के करीब आकर बैठ गई। वह दीवार का सहारा लिए बीड़ी के कश ले रहा था।

‘‘सो गया मुन्ना....?’’

‘‘जी! लो दूध पी लो।’’ सिल्वर का पुराना गिलास उसने बढ़ाया।

‘‘नहीं, मुन्ने के लिए रख दो। उठेगा तो....।’’ वह गिलास को माप रहा था।

‘‘मैं उसे अपना दूध पिला दूँगी।’’ वह आश्वस्त थी।

‘‘पगली, बीड़ी के ऊपर दूध–चाय नहीं पीते। तू पी ले।’’ उसने बहाना बनाकर दूध को उसके और करीब कर दिया।

तभी.... बाहर से हवा के साथ एक स्वर उसके कानों से टकराया। उसकी आँखें कुर्ते की खाली जेब में घुस गई।

‘‘सुनो, जरा चाय रख देना।’’

पत्नी से कहते हुए उसका गला बैठ गया।

-मधुदीप
[1 मई 1950 - 11 जनवरी 2022]

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