हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
शेख चिल्ली की चिट्ठी (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

शेख चिल्ली का भाई उनसे दूर किसी अन्य गाँव में रहता था। किसी ने शेख चिल्ली को उनके बीमार होने की ख़बर दी तो उनकी ख़ैरियत जानने के लिए शेख ने अपने भाई को ख़त लिखने की सोची। उस ज़माने में डाकघर तो थे नहीं, लोग चिट्ठियाँ गाँव के नाई के हाथों या नौकर के हाथों भिजवाया करते थे।

शेख चिल्ली ने नाई से संपर्क किया लेकिन नाई बीमार था। फसल कटाई का वक़्त होने से कोई नौकर या मज़दूर भी खाली नहीं था। मियाँ जी ने तय किया कि वह ख़ुद ही चिट्ठी पहुँचाने जाएँगे। अगले दिन वह सुबह-सुबह चिट्ठी लेकर घर से निकल पड़े। शाम ढलते-ढलते वे अपने भाई के घर पहुँचे और उन्हें चिट्ठी पकड़ाकर लौटने लगे।

उनके भाई ने हैरानी से पूछा, "अरे! चिल्ली भाई! तुम वापिस क्यों जा रहे हो? क्या मुझसे कोई नाराजगी है?"

शेख चिल्ली के भाई ने यह कहते हुए उसे रोकते हुए, बैठने को कहा तो चिल्ली बोले, "भाई जान, ऐसा है कि मैंने आपको चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी ले आने को न नाई मिला और न कोई नौकर। इसलिए मुझे ही चिट्ठी देने आना पड़ा।

भाई ने कहा, "हाँ, वह तो ठीक है लेकिन जब आप आ ही गए हो तो दो-चार दिन ठहर कर जाओ।"

भाई की बात सुनकर शेख चिल्ली बिगड़ गए, मुँह बनाते हुए बोले तेज आवाज में बोले, "आप भी अजीब इंसान हैं। समझते ही नहीं! मैं तो सिर्फ नाई का फर्ज़ निभा रहा हूँ। मुझे आना होता और आपसे मिलना होता तो मैं चिट्ठी क्यों लिखता?" शेखचिल्ली अपने भाई से हाथ छुड़ा अपनी राह हो लिए।

[भारत-दर्शन संकलन]

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