भाषा की समस्या का समाधान सांप्रदायिक दृष्टि से करना गलत है। - लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु'।
नववर्ष (काव्य)  Click to print this content  
Author:भवानी प्रसाद मिश्र

दुस्समय ने साँस ली है,
वर्ष भर अविरत किया श्रम,
और जगती को निरन्तर ढालते रह कर दिया तम,
पी लिया उसने, कि शंकर शिव करें,
उसका न केवल कंठ नीला है;
भिद गया रग-रग सजगता खो चुकी,
हर तन्तु ढीला है;
यम, नियम में दृढ,
कि उनके सिद्ध हस्तों ने स्वयं ही फाँस ली है,
किन्तु हे शिव एक आशा है
समय ने साँस ली है ।

शीश पर गहना बनाए, टाँग रक्खा है युगों से
क्यों सुधाकर को?
कि हे मंगल विधाता, आज तो इस चैत्र में,
दो बूँद टपका दो
न असमय में मरें हम, आप मृत्युंजय,
कि हममें प्राण तो भर दो;
उठें हम और उठ जाए जगत से भाग्य का रोना,
सुलग उठे हमारे प्राण की भट्टी कि तब गल जाए यह सोना
कि जिसकी नींव पर पशुता
हवेली बाँध सिर ताने खड़ी है,
प्रसीदतु शिव
कि आयी पास मरने की घड़ी है ।

- भवानी प्रसाद मिश्र
[ मार्च, 1939 ]

 

 

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