पूरब का दरवाज़ा खोल धीरे-धीरे सूरज गोल लाल रंग बिखरता है ऐसे सूरज आता है।
गाती हैं चिड़ियाँ सारी खिलती हैं कलियाँ प्यारी दिन सीढ़ी पर चढ़ता है। ऐसे सूरज बढ़ता है।
लगते हैं कामों में सब सुस्ती कहीं न रहती तब धरती-गगन दमकता है। ऐसे तेज़ चमकता है !
गरमी कम हो जाती है धूप थकी सी आती है सूरज आगे चलता है ऐसे सूरज ढलता है।
- श्रीप्रसाद
|