(8 अप्रैल, सन् 1929 को असेम्बली में बम फैंकने पर लिखी यह अज्ञात रचनाकार की रचना)
डरे न कुछ भी जहां की चला-चली से हम, गिरा के भागे भी न बम असेंबली से हम।
उड़ाए फिरता था हमको खयाले-मुस्तकबिल (भविष्य का विचार) कि बैठ सकते न थे दिल की बेकली से हम।
हम इंकलाब की कुरबानगह (बलीवेदी) पे चढ़ते हैं, कि प्यार करते हैं ऐसे महाबली से हम।
जो जी में आए तेरे, शौक से सुनाए जा, कि तैश खाते नहीं हैं कटी-जली से हम।
न हो तू चींबजबीं (क्रुद्ध), तिवरियों पे डाल न बल, चले-चले ओ सितमगर, तेरी गली से हम।
- अज्ञात साभार - जब्तशुदा तराने
|