चन्द हिंदी भाषा के आदि कवि माने जाते हैं। ये सदैव भारत वर्ष के अंतिम सम्राट चौहान-कुल के पृथ्वीराज चौहान के साथ रहा करते थे। दिल्लीश्वर पृथ्वीराज के जीवन भर की कहानियों का वर्णन इन्होंने अपने ‘पृथ्वीराज रासो' में किया है। शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी ने संवत् 1250 में थानेश्वर की लड़ाई में पृथ्वीराज को पकड़ लिया, और उनकी दोनों आंखें फोड़कर कैद कर लिया। उसी समय उनके परमप्रिय सामन्त कविवर चन्दबरदाई को भी कारावास में डाल दिया।
कहते हैं, पृथ्वीराज शब्दभेदी बाण चलाना जानते थे। एक दिन शहाबुद्दीन का भाई गयासुद्दीन ज्योंही उनके सामने आया त्योंही चन्द ने पृथ्वीराज को संबोधनकर कहा--
बारह बांस बत्तीस गज, अंगुल चारि प्रमाण। इतने पर पतसाह है, मति चुक्कै चौहान॥ फेरि न जननी जनमि हैं, फेरि ने खैंचि कमान। सात बार तो चूकियो, अब न चूक चौहान॥ धर पलट्यौ पलटी धरा, पलट्यौ हाथ कमान। चन्द कहै पृथ्वीराज सों, जनि पलटै चौहान॥
यह सुनते ही पृथ्वीराज ने एक शब्द भेदी बाण चलाया और वह तीर ठीक गयासुद्दीन के कलेजे में जा लगा। वह तो मर गया, पर यवन दल उन दोनों पर टूट पड़े। बस, चंद ने झटपट यह सोरठा पढ़ा-
अबकी चढ़ी कमाल, को जाने कब फिर चढ़ै। जनि चुक्कै चौहान, इक्के मारिय इक्क सर॥
यह कहते ही पूर्व संकेतानुसार पृथ्वीराज ने चन्द को और चन्द ने पृथ्वीराज को मार डाला।
[भारत-दर्शन संकलन]
टिप्पणी : उपर्युक्त कहानी 'पृथ्वीराज रासो' पर आधारित संस्करण है, जो एक लोककथा के रूप में प्रसिद्ध है लेकिन इसे ऐतिहासिक प्रमाण नहीं कहा जा सकता।] |