24 जनवरी 2019: नेता जी की जयंती (23 जनवरी) पर नेशनल लाइब्रेरी कोलकाता में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत बाउल गीत-संगीत का आयोजन हुआ। बाउल गीतों में बंगाली लोक संस्कृति को आदर्शों के प्रतीक के रूप में माना जाता है । बाउल में भाट, रचनाकार, संगीतकार, नृत्तक और अभिनेता सभी एक जैसी भूमिका निभाते हैं। उनका उद्देश्य मनोरंजन करना होता है।
बाउल पश्चिम बंगाल का प्रसिद्ध आध्यात्मिक लोक गीत है। बाउल गायक कभी भी अपना जीवन एक-दो दिन से ज्यादा एक स्थान पर व्यतीत नहीं करते। वे गाँव-गाँव जाकर भगवान विष्णु के भजन एवं लोक गीत गाकर भिक्षा मागं कर अपना व्यतीत करते हैं। बाउल एक विशेष लोकाचार और धर्ममत भी है। इस मत का जन्म बंगाल की माटी में हुआ है। बाउल परंपरा का प्रभाव देश का राष्ट्रगान लिखने वाले 'गुरुदेव' रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं पर भी पड़ा है। रवींद्र संगीत में भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
गीतों, विरामों, हावभावों और मुद्राओं के द्वारा ये खानाबदोष भिक्षु दूरदूर तक के क्षेत्रों में प्रेम और हर्षेान्माद का संदेश देते हैं। पिछली पीढियों के लोग भिक्षा के लिए हाथ में कटोरा एवं एकतारा लिए हुए गाते हुए फकीर निश्चत रूप से याद होंगे। बाउल गीत मे दैवी शक्ति के प्रति दिव्य प्रेम व्यक्त किया जाता है ।
बाउल संगीत में कुछ विशेष प्रकार के संगीत वाद्यों का प्रयोग होता है जैसे एकतारा, दोतारा, ढोल, मंजीरा इत्यादि। ये वाद्ययंत्र प्राकृतिक वस्तुओं जैसे मिट्टी, बांस, लकड़ी इत्यादि से बनाये जाते हैं। इनकी ध्वनियां मधुर होती हैं।
[भारत-दर्शन समाचार] |