उत्तर गुजरात के पाटण जिले में राधनपुर नाम का एक छोटा-सा नगर है। वहाँ एक तालाब है, जिसके तट पर एक कुत्ते की समाधि है। समाधि और वह भी कुत्ते की! यह जानकर आश्चर्य होगा ही। उसके पीछे एक सुंदर और हृदय को हिला देनेवाली कथा है।
पुराने जमाने में व्यापार का सामान लाने-ले जाने का काम बनजारे करते थे। एक बनजारा था। वह अपने ऊँटों पर गाँवों का माल सामान लादकर शहरों में ले जाता था और वहाँ से मिसरी, गुड़-मसाले आदि भरकर गाँवों तक ले आता था। लाखों का व्यापार था उसका। इसीलिए लोग उसे लाखा बनजारा कहते थे। लाखा के पास एक सुंदर कुत्ता था। कुत्ता बड़ा वफादार था। रात को वह बनजारे के पड़ाव की रखवाली करता था, अगर चोर-लूटेरे पड़ाव की तरफ आते दिखाई देते थे तो कुत्ता भौंक-भौंक कर उन्हें दूर भगा देता था। बनजारा अपने कुत्ते की वफादारी से बहुत खुश था।
एक बार बनजारा व्यापार में मार खा गया और रुपयों की जरूरत आ पड़ी। वह राधनपुर के एक सेठ के पास पहुँचा। उसने अपनी बात बताई।
सेठ ने कहा, "रुपये तो मैं दे दूंगा, मगर उसके बदले में तुम क्या गिरवी रखोगे?"
लाखा बोला, "सेठजी मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। मैंने व्यापार में सब कुछ खो दिया है। मेरी जबान पर विश्वास रखें और मुझे रुपये दे दीजिए। मैं आपकी पूरी रकम सूद समेत एक साल में ही चुका दूँगा।"
सेठ बोले; "कोई बात नहीं। तुम्हारे पास यह कुत्ता है। तो तुम इसे ही जमानत के रूप में दे दो। जब तुम सारे रुपये लौटा दोगे, तब मैं भी कुत्ता तुम्हें वापस दे दूंगा।"
बनजारे को दुःख तो बहुत हुआ अपने कुत्ते को देने में, मगर कोई चारा नहीं था।रुपये लेकर वह चला गया।
कुछ दिन बीते। एक बार सेठ के यहाँ चोरी हुई। कुत्ते ने चोरों का पीछा किया। दूर जंगल में जाकर चोरों ने सारा माल-सामान जमीन में गाड़ दिया और वहाँ से नौ-दो-ग्यारह हो गए। कुत्ता वहाँ भौंक-भौंककर सेठ को बताने लगा कि लुटेरे आपकी दुकान को तोड़कर माल उठा ले गए हैं। सेठ तो हक्का-बक्का ही रह गए। कुत्ता सेठ की धोती पकड़कर आगे खींचने लगा। सेठ कुत्ते के पीछे-पीछे चलने लगे। जहाँ चोरों ने माल छिपाया था, वहाँ जाकर कुत्ता अपने पैरों से मिट्टी खोदने लगा। थोड़ा ही खोदने पर सब सामान निकल आया। सेठ की खुशी का कोई पार नहीं था। वह कुत्ते को प्रेम से थपथपाने लगा। कुत्ते की वफादारी पर वह मुग्ध हो गया। घर जाकर उसने एक चिट्ठी लिखकर कुत्ते के गले के पट्टे में बाँधकर कहा, "कुत्ते भाई - जाओ तुम अपने मालिक लाखा बनजारा के पास,तुम मुक्त हो।" कुत्ता खुश हो गया और अपने मालिक से मिलने के लिए जल्दी-जल्दी भागने लगा।
इधर लाखा ने भी व्यापार में खूब रुपया कमाया। वह सेठ को उसकी रकम वापस करने के लिए उसी रास्ते से आ रहा था। उसने दूर से अपने कुत्ते को अपनी ओर आते हुए देखा। वह नाराज़ हो गया। सोचने लगा कि कुत्ते ने मेरी जबान काट ली है। उसने बेवफाई की है। अब मैं सेठ को क्या मुँह दिखाऊँगा? उसने आव देखा न ताव; बस, कुत्ते के माथे पर लाठी का प्रहार कर दिया। कुत्ता बेहोश होकर गिर पड़ा। लाखा ने देखा कि कुत्ते के गले में एक चिट्ठी बँधी है। उसने इसे खोलकर पढ़ा, 'लाखा, तुम्हारे कुत्ते ने मुझे सूद समेत रुपये लौटा दिए हैं; अत: कुत्ते को मैं मुक्त करता हूँ। उसने मेरे घर चोरी किए गए माल-सामान को वापस दिलवा दिया है। खुश होकर मैंने स्वयं इसे मुक्त किया है।'
लाखा तो चकित हो गया। वह चिल्लाने लगा - "हाय, यह मैंने क्या कर दिया ? हाय, यह मैंने क्या कर दिया?" वह कुत्ते के शव को अपनी गोदी में लेकर फूट-फूटकर रोने लगा, लेकिन अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
उसने उस वफ़ादार कुत्ते की समाधि बनवाई जो आज भी पाटण जिले के राधनपुर के तालाब के किनारे पर खड़ी है और उस कुत्ते की वफ़ादारी की कथा संसार को सुना रही है।
- लल्लु भाई रबारी
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