यह दोहे अत्यंत पठनीय व रोचक हैं चूंकि यह असाधारण दोहे हैं जिनमें न केवल लोकोक्तियाँ तथा मुहावरे प्रयोग किए गए हैं बल्कि उनका अर्थ भी दोहे में सम्मिलित है।
एक समय में जब 'विकल' करते हों दो काम । दुविधा में दोऊ गये, माया मिली न राम ।।
यत्न किये बिन वस्तु क्या ? मन चाही मिल जाय । 'विकल' न रोये बिन कभी, माता दूध पिलाय ॥
एक वस्तु से ले लिये, जब हमने दो काम । 'विकल' आम के आम हैं, औ' गुठली के दाम ।।
'विकल' समय जाता रहा, अब रोता किस हेत । क्या पछताये होत जब, चिड़ियां चुग गई खेत ।।
'विकल' न छोटों की सुने, हो जहें बड़ा समाज । नक्कारों ने कब सुनी, तूती की आवाज ।।
खाकर धोखा फिर 'विकल' करै न वैसी चूक । जला हुआ ज्यों दूध का, पिये छाछ को फूंक ॥
जो महान होते 'विकल' लक्षण शिशु दिखलात । होनहार बिरवान के, होत चीकने पात ।।
जहाँ शक्ति सीमित रहे, उसका यही निचोड़ । मसजिद तक ही तो 'विकल' है मुल्ला की दौड़ ।।
गले जबरदस्ती पड़े 'विकल' न कुछ पहचान । मान भले मत मान तू, मैं तेरा मेहमान ॥
आश्रय दाता का बने, शत्रु! अरे कब खैर । जल में रह कर के 'विकल', करै मगर से बैर ॥
गुप्त सलाह एकान्त में, करो! बात मम मान । हो जाते हैं 'विकलजी' दीवारों के कान ।।
-विकल |