वो कौवों से परेशान हो उन्हें मारने का उपाय सोचने लगा।
आटे के घोल में जहर मिलाकर टिकियाँ बनायीं और आँगन में बिखेर दीं। एक कौवा उडकर टिकिया के पास बैठा। गर्दन घुमा-घुमाकर टिकिया को देखा और खाली चोंच ही काँव-कॉव करता हुआ वापिस मुंडेर पर जा बैठा।
सामने की दीवार में घोंसले से एक चिड़िया बच्चों का चुग्गा देकर बाहर आई। आँगन में रखी टिकिया को चोंच में लेकर वापिस घोंसले की तरफ उड़ने की कोशिश की, फड़फडाकर ज़मीन पर आ गिरी और शांत हो गई।
पलक झपकते ही कौवे ने झपट्टी मारी और चिड़ियों को ले उड़ा।
-डॉ रामकुमार घोटड़, भारत [20वीं सदी की मेरी लघुकथाएँ]
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