कमला ने बाजार से रिक्शा लिया और घर की तरफ़ चल पड़ी। रिक्शा एक 18-20 साल का लड़का खींच रहा था। कमला अपनी आदत के अनुसार लड़के से बातें करने लगी।
'क्या नाम है रे तेरा?'
'श्याम।'
'कहाँ का रहने वाला है?'
'रोहतक का।'
'रोहतक खास या आस-पास कोई गाँव?'
'हाँ, रोहतक के पास जमापुर गाँव।'
'क्या? तू जमालपुर का है। जमालपुर में किसका?'
'लक्ष्मण का।'
'तू लक्ष्मण का छोरा है? रे, मैं भी जमालपुर की हूँ। मुझे पहचाना नहीं। असल में कैसे पहचानेगा, जब मैं ब्याहकर इस शहर में आई तब तू शायद पैदा भी नहीं हुआ होगा। तेरी माँ का खूब आना-जाना था हमारे घर में। सब राजी-खुशी तो हैं न?'
घर के सामने उतरकर कमला बोली-'ये ले बीस रुपए और चल घर के अंदर, चाय-पानी पीकर जाइए।'
'नहीं दीदी, मैं किराया नहीं लूँगा। माँ ने कहा था कि गाँव की कोई बहन-बेटी मिले तो किराया मत लेना।'
- नरेंद्रकुमार गौड़ हाउस नं 153, गली नं-5, ए ब्लॉक, शीतला कॉलोनी, गुड़गाँव (हरियाणा) 122001 [शोध दिशा, सितंबर 2014] |