इस कथा के अनुसार भगवान श्रीराम के पूर्वजों के राज्य में एक माली नामक राक्षस की बेटी ढुंढा राक्षसी थी। इस राक्षसी ने भगवान शिव को प्रसन्न के करके तंत्र विद्या का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसे ऐसा वर प्राप्त था जिससे उसके शरीर पर किसी भी देवता या दानव के शस्त्रास्त्र का कोई मारक प्रभाव नहीं होता था। इस प्रकार भयमुक्त ढुंढा प्रत्येक ग्राम और नगर के बालकों को पीड़ा पहुंचाने लगी।
अपनी विद्या से वह अदृश्य होकर बच्चों को कष्ट पहुंचाती। तंत्र विद्या से यह बच्चों को बीमार भी कर देती थी।
भगवान शिव ने वर देते समय यह युक्ति रख छोड़ी कि जहां बच्चों का शोरगुल, हुड़दंग और हो हल्ला होगा वहां ढुंढा असफल रहेगी।
तत्पश्चात होली के अवसर पर बच्चों ने मस्ती व हुड़दंग करनी आरम्भ कर दिया।
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