जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
कलम और कागज़ (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:मुनिज्ञान

अपने ऊपर आती हुई कलम को देखते ही कागज़ ने कहा--जब भी तुम आती हो, मुझे सिर से लेकर पैर तक काले रंग से रंग देती हो। मेरी सारी शुक्लता और स्वच्छता को विनष्ट कर देती हो ।

कलम ने कहा--देखो, मैं तुम्हारी शालीनता-स्वच्छता भंग नहीं कर रही हूँ बल्कि तुम्हारी उपादेयता में निखार ला रही हूँ। जब तुम्हें मै अक्षरों की रंगीनता से भर देती हूँ तो लोग तुम्हें सुरक्षित रखते हैं। समझदार व्यक्ति की दृष्टि में कोरे कागज़ का कोई विशेष महत्व नहीं होता। यदि इसमें कुछ न कुछ लिखा होता है तो सुज्ञ व्यक्ति अवश्य उसे उठाता है और पढ़ने की कोशिश करता है। तो, भाई तुम्हारे ऊपर जितना अधिक लेखन होगा, तुम्हारी उतनी ही अधिक उपादेयता बढ़ती जाएगी ।

कलम की सत्य बात कागज़ ने सहर्ष स्वीकार कर ली ।

ऊपरी कालेपन या गोरेपन का इतना कोई महत्व नहीं है। महत्व तो उसका है कि उसके अन्तरंग में उपयोगी वस्तु क्या है ?
[ मुनिज्ञान ]

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