जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
अर्जुन या एकलव्य  (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार हैप्पी

'अर्जुन और एकलव्य' की कहानी सुनाकर मास्टर जी ने बच्चों से पूछा, "तुम अर्जुन बनोगे या एकलव्य?"

सारी कक्षा लगभग एक स्वर में बोली,"अर्जुन!"

मास्टर जी बच्चों की समझ पर प्रसन्न थे। तभी कोने में बैठे उस एक बच्चे पर उनकी नज़र पड़ी जो उत्तर देने की जगह मौन रहा था।

"रवि, तुम अर्जुन बनोगे या एकलव्य?"

"एकलव्य!"

उसका उत्तर सुनकर कक्षा के सभी बच्चे 'हीं -हीं ' करके दांत दिखा रहे थे।

"बेटा! एकलव्य क्यों, अर्जुन क्यों नहीं?"

"मास्टरजी, अर्जुन सब सुविधाएं पाकर भी भूलें कर देता था लेकिन एकलव्य सुविधाहीन होते हुए भी कभी भूल न करता था। उसका निशाना कभी नहीं चूका! गुणवान कौन अधिक हुआ?"

मास्टरजी के आगे एक नया 'एकलव्य' खड़ा था। अब मास्टर जी क्या करने वाले थे?

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

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