जेबकतरे ने उसकी जेब काटी तो लगा था कि काफी माल हाथ लगा है, भारी जान पड़ती थी।
देखा तो सब के सब कागज़ निकले।
काग़ज़ों पर नजर डाली तो तीन कविताएं, एक कहानी और दो लघु-कथाएं थीं। नोट एक भी न था।
जेबकतरे को लेखक की जेब काटने का पछतावा हो रहा था।
- रोहित कुमार 'हैप्पी' संपादक, भारत-दर्शन, न्यूज़ीलैंड
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