ऐ मन! अंतर्द्वंद्व से परेशान क्यों है? जिंदगी तो जिंदगी है, इससे शिकायत क्यों है?
अधूरी चाहतों का तुझे दर्द क्यों है? मृग मारीचिका में आखिर तू फँसा क्यों है?
सपने सभी हों पूरे तुझे ये भ्रम क्यों है? यथार्थ की दुनिया से तू अपरिचित क्यों है?
विचारों के भँवर में तू घिरा क्यों है? कुछ पाया नहीं तो खोने का संताप क्यों है?
मन के विहग तू हवाओं से तेज उड़ता क्यों है? ‘तेरा-मेरा' के जाल में तू उलझा क्यों है?
अपनी खींची लक्ष्मण-रेखा से बाहर आ जरा, हर अमावस के साथ पूनम की चाँदनी भी तो है । जिंदगी तो जिंदगी है, इससे शिकायत क्यों है?
- रीता कौशल, ऑस्ट्रेलिया PO Box: 48 Mosman Park WA-6912 Australia Ph: +61-402653495 E-mail: rita210711@gmail.com
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