'गुलिस्तां' शेख़ सादी की उपदेशात्मक कथाओं का संग्रह है। अधिकतर उपदेश-कथाएँ शुष्क मानी जाती हैं लेकिन सादी ने ये उपदेश बड़े सरस व सुबोध ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। सादी की कथा-प्रस्तुति स्वयं उनकी विलक्षण प्रतिभा का प्रमाण है। वह जिस बात को लेते हैं उसे ऐसे उत्कृष्ट और भावपूर्ण शब्दों में वर्णन करते हैं कि आप मंत्र-मुग्ध हो जाएँ।
शेख़ सादी की विलक्षण बुद्धि कौशल के कुछ नमूने :उदाहरणार्थ, इस बात को कि पेट पापी है, इसके कारण मनुष्य को बड़ी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं, वह इस प्रकार वर्णित करते हैं -
"अगर जौरे शिकम न बूदे, हेच मुर्ग़ दर दाम न उफतादे, बल्कि सैयाद खुद दाम न निहारे।"
भाव - यदि पेट की चिंता न होती तो कोई चिड़िया जाल में न फंसती, बल्कि कोई बहेलिया जाल ही न बिछाता।
इसी तरह इस बात को कि न्यायाधीश भी रिश्वत से वश में हो जाते हैं, वह यों बयान करते हैं -
"हमा कसरा दन्दां बतुर्शी कुन्द गरदद, मगर काजियां रा बशीरीनी।"
भाव - अन्य मनुष्यों के दांत खटाई से गट्ठल हो जाते हैं लेकिन न्यायकारियों के मिठाई से।
उनको यह लिखना था कि भीख मांगना जो एक निंदनीय कर्म है उसका अपराध केवल फ़कीरों पर ही नहीं बल्कि अमीरों पर भी है, इसको वह इस तरह लिखते हैं -
"अगर शुमा रा इन्साफ़ बूदे व मारा कनावत, रस्मे सवाल अज़ जहान बरख़ास्ते।"
भाव - यदि तुममें न्याय होता और हममें संतोष, तो संसार में मांगने की प्रथा ही उठ जाती।
आइए. सादी की कुछ कथाओं का आस्वादन करें। |