विजये ! तूने तो देखा है, वह विजयी श्री राम सखी ! धर्म-भीरु सात्विक निश्छ्ल मन वह करुणा का धाम सखी !!
बनवासी असहाय और फिर हुआ विधाता वाम सखी ! हरी गई सहचरी जानकी वह व्याकुल घनश्याम सखी !।
कैसे जीत सका रावण को रावण था सम्राट सखी ! रक्षक राक्षस सैन्य सबल था प्रहरी सिंधु विराट सखी !!
राम-समान हमारा भी तो रहा नहीं अब राज सखी ! राजदुलारों के तन पर हैं सजे फकीरी साज सखी !!
हो असहाय भटकते फिरते बनवासी-से आज सखी ! सीता-लक्ष्मी हरी किसी ने गयी हमारी लाज सखी !!
रामचन्द्र की विजय-कथा का भेद बता आदर्श सखी ! पराधीनता से छूटे यह प्यारा भारतवर्ष सखी !!
सबल पुरुष यदि भीरु बनें तो हमको दे वरदान सखी। अबलाएँ उठ पड़ें, देश में-- करें युद्ध घमसान सखी !!
पापों के गढ़ टूट पड़ें औ रहना तुम तैयार सखी ! विजये! हम-तुम मिल कर लेंगी अपनी माँ का प्यार सखी !!
- सुभद्राकुमारी चौहान |