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जो कुछ होनी थी, सब होली! धूल उड़ी या रंग उड़ा है,हाथ रही अब कोरी झोली। आँखों में सरसों फूली है,सजी टेसुओं की है टोली। पीली पड़ी अपत, भारत-भू,फिर भी नहीं तनिक तू डोली ! - मैथिलीशरण गुप्त
[साभार: स्वदेश-संगीत, साहित्य-सदन, चिरगाँव, झाँसी]
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