वीणा बज-सी उठी, खुल गये नेत्र और कुछ आया ध्यान। मुड़ने की थी देर, दिख पड़ा उत्सव का प्यारा सामान॥
जिनको तुतला-तुतला करके शुरू किया था पहली बार। जिस प्यारी भाषा में हमको प्राप्त हुआ है माँ का प्यार॥
उस हिन्दू जन की गरीबिनी हिन्दी प्यारी हिन्दी का। प्यारे भारतवर्ष -कृष्ण की उस प्यारी कालिन्दी का॥
है उसका ही समारोह यह उसका ही उत्सव प्यारा। मैं आश्चर्य-भरी आँखों से देख रही हूँ यह सारा॥
जिस प्रकार कंगाल-बालिका अपनी माँ धनहीना को। टुकड़ों की मोहताज़ आजतक दुखिनी को उस दीना को॥
सुन्दर वस्त्राभूषण-सज्जित, देख चकित हो जाती है। सच है या केवल सपना है, कहती है, रुक जाती है ।।
पर सुंदर लगती है, इच्छा यह होती है कर ले प्यार । प्यारे चरणों पर बलि जाये कर ले मन भर के मनुहार ।।
इच्छा प्रबल हुई, माता के पास दौड़ कर जाती है । वस्त्रों को सँवारती उसको आभूषण पहनाती है ।
उसी भांति आश्चर्य मोदमय, आज मुझे झिझकाता है । मन में उमड़ा हुआ भाव बस, मुंह तक आ रुक जाता है ।।
प्रेमोन्मत्ता होकर तेरे पास दौड़ आती हूँ मैं । तूझे सजाने या संवारने में ही सुख पाती हूं मैं ।।
तेरी इस महानता में, क्या होगा मूल्य सजाने का ? तेरी भव्य मूर्ति को नकली आभूषण पहनाने का ?
किन्तु हुआ क्या माता ! मैं भी तो हूँ तेरी ही सन्तान । इसमें ही संतोष मुझे है इसमें ही आनन्द महान ।।
मुझ-सी एक-एक की बन तू तीस कोटि की आज हुई । हुई महान, सभी भाषाओं-- की तू ही सरताज हुई ।।
मेरे लिए बड़े गौरव की और गर्व की है यह बात । तेरे ही द्वारा होवेगा, भारत में स्वातंत्रय-प्रभात ।।
असहयोग पर मर-मिट जाना यह जीवन तेरा होगा । हम होंगे स्वाधीन, विश्व का वैभव धन तेरा होगा ।।
जगती के वीरों-द्वारा शुभ पदवन्दन तेरा होगा ! देवी के पुष्पों द्वारा अब अभिनन्दन तेरा होगा ।।
तू होगी आधार, देश की पार्लमेण्ट बन जाने में । तू होगी सुख-सार, देश के उजड़े क्षेत्र बसाने में ।।
तू होगी व्यवहार, देश के बिछड़े हृदय मिलाने में । तू होगी अधिकार, देशभर-- को स्वातंत्रय दिलाने में ।।
- सुभद्राकुमारी चौहान
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