मोर मुकट पीताम्बर पहने,जबसे घनश्याम दिखा साँसों के मनके राधा ने, बस कान्हा नाम लिखा राधा से जब पूँछी सखियाँ, कान्हा क्यों न आता मैं उनमें वो मुझमे रहते, दूर कोई न जाता द्वेत कहाँ राधा मोहन में, यों ह्रदय में समाया जग क्या मैं खुद को भी भूली, तब ही उसको पाया।
वो पहनावे चूड़ी मोहे,बेंदी भाल लगावे रोज श्याम अपनी राधा से, निधिवन मिलवे आवे धन्य हुईं सखियाँ सुन बतियाँ,जाकी दुनिया सारी उंगली पे नचे राधा की, वश में है गिरधारी चंचल चितवन मीठी वाणी, बंशी होँठ पे टिका रीझा ही कब धन दौलत पे, श्याम प्रेम दाम बिका नेत्र सजल राधा से बोले, भाव विभोर मुरारी अब मोहन से पहले राधा, पूजे दुनिया सारी। [सार छंद]
- सपना मांगलिक
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