तूफान जुल्मों जब्र का सर से गुज़र लिया कि शक्ति-भक्ति और अमरता का बर लिया । खादिम लिया न साथ कोई हमसफर लिया, परवा न की किसी की हथेली पर सर लिया । आया न फिर क़फ़स में चमन से निकल गया । दिल में वतन बसा के वतन से निकल गया ।।
बाहर निकल के देश के घर-घर में बस गया; जीवट-सा हर जबाने-दिलावर में बस गया । ताक़त में दिल की तेग़ से जौर में बस गया; सेवक में बस गया कभी अफसर में बस गया । आजाद हिन्द फौज का वह संगठन किया । जादू से अपने क़ाबू में हर एक मन किया ।।
ग़ुर्बत में सारे शाही के सामान मिल गये, लाखों जवान होने को कुर्बान मिल गये । सुग्रीव मिल गये कहीं हनुमान् मिल गये अंगद का पाँव बन गये मैदान मिल गये ' कलियुग में लाये राम-सा त्राता सुभाषचन्द्र । आजाद हिन्द फौज के नेता सुभाषचन्द्र ।।
हालांकि! आप गुम हैं मगर दिल में आप हैं हर शख़्स की जुबान पै महफिल में आप हैं । ईश्वर ही जाने कौन-सी मन्जिल में आप हैं, मँझधार में हैं या किसी साहिल में आप हैं । कहता है कोई, अपनी समस्या में लीन हैं । कुछ कह रहे हैं, आप तपस्या में लीन हैं ।। आजाद होके पहुँचे हैं सरदार आपके, शैदा वतन के शेरे-बबर यार आपके, बन्दे बने हैं काफिरो-दीदार आपके, गुण गाते देश-देश में अखबार आपके ।। है इन्तजार आप मिलें, पर खुले हुए । आँखों की तरह दिल्ली के हैं दर खुले हुए ।। ५
- गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
#
Hindi Poem Subhashchandra
सुभाषचन्द्र - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही की कविता
|