जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
मैं तटनी तरल तरंगा, मीठे जल की निर्मल गंगा (काव्य)    Print  
Author:शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड
 

मैं तटनी तरल तरंगा
मीठे जल की निर्मल गंगा

पर्वत की मैं बिटिया
नदी की निर्मल धारा

उद्गम स्थल की शिशुबाला,
सखी-धाराओं संग मिल

क्रीडा करती, खिलखिलाती,
गाती, इठलाती, इतराती,

बलखाती, तीव्र गति से
मुड जाती,गिर गिर पड़ती,

आगे बढ़ती, पत्थरों से टकराती,
दुग्ध फेनिल झाग से नहाती,

कभी दौड़ दौड़, कभी सरक सरक
कभी चंचल तो कभी शांत शांत

आयी अब मैदानों में
खेतों औ खलियानों में

खेतों को जल दान दिया
फसलों को बल प्रदान किया

खेतों में आयी तरुनाई
जीव जगत की प्यास बुझायी

मैं तटनी तरल तरंगा
मीठे जल की निर्मल गंगा

 

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