परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
गरमागरम थपेड़े लू के (काव्य)    Print  
Author:आनन्द विश्वास | Anand Vishvas
 

गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है,
इतनी गरमी कभी न देखी, ऐसा पहली बार हुआ है।
नींबू - पानी, ठंडा - बंडा,
ठंडी बोतल डरी - डरी है।
चारों ओर बबंडर उठते,
आँधी चलती धूल भरी है।
नहीं भाड़ में सीरा भैया, भट्ठी-सा संसार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।
आते - जाते आतंकी से,
सब अपना मुँह ढ़ाँप रहे हैं।
बिजली आती-जाती रहती,
एसी, कूलर काँप रहे हैं।
शिमला नैनीताल चलें अब,मन में यही विचार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।
अभी सुना भू-कम्प हुआ है,
और सुनामी सागर तल पर।
दूर-दूर तक दिखे न राहत,
आफत की आहट है भू पर।
बन्द द्वार कर घर में बैठो, जीना ही दुश्वार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।
बादल फटा, बहे घर द्वारे,
नगर-नगर में पानी-पानी।
सृष्टि-सन्तुलन अस्त व्यस्त है,
ये सब कुछ अपनी नादानी।
मानव-मन पागल है कितना,समझाना बेकार हुआ है,
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।

-आनन्द विश्वास

 

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