बात हम मस्ती में ऐसी कह गए, होश वाले भी ठगे से रह गए।
कष्ट जीवन में हमारे थे बहुत, हम मगर हँसते हुए सब सह गए।
बढ़ गए, आगे बढ़े जिन के कदम, रह गए जो लोग पीछे रह गए।
लाख चाहा था कि आँखों में रहें, किंतु विह्वल अश्रु फिर भी बह गए।
- डा राणा प्रतापसिंह गन्नौरी 'राणा' |