नहीं कुछ भी बताना चाहता है भला वह क्या छुपाना चाहता है तिज़ारत की है जिसने आँसुओं की वही ख़ुद मुस्कुराना चाहता है
किया है ख़ाक़ जिसने चमन को वो मुक़म्मल आशियाना चाहता है
हथेली पर सजाकर एक क़तरा समंदर वह बनाना चाहता है
ज़माना काश, हो उसके सरीखा यही दिल से दीवाना चाहता है
ज़रा सी बात है बस रौशनी की मगर वह घर जलाना चाहता है
ज़ुबाँ से कुछ न बोलूँ जुल्म सहकर यही मुझसे ज़माना चाहता है
लगीं कहने यहाँ खामोशियाँ भी ज़ुबाँ तक कुछ तो आना चाहता है
- डॉ. शम्भुनाथ तिवारी प्रोफेसर हिंदी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ (भारत) संपर्क-09457436464 ई-मेल: sn.tiwari09@gmail.com |