देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।
आओ होली खेलें संग (काव्य)    Print  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड
 

कही गुब्बारे सिर पर फूटे
पिचकारी से रंग है छूटे
हवा में उड़ते रंग
कहीं पर घोट रहे सब भंग!

बुरा ना मानो होली है
हाँ जी, हाँ जी, होली है
करते बच्चे-बूढ़े तंग
बताओ कैसा है ये ढंग?

भाग रहा है आज कन्हैया
नहीं बचा पाएगी मैय्या 
गोपियां जीत जाएंगी जंग
मलेंगी जी भर उसको रंग।  

कहीं पिट रहे आज गोपाला
बुरा पड़ा गोरी से पाला
रो रहे देख के सभी मलंग
दूर कहीं बाजे है मृदंग।  

गली-गली में हुई ठिठोली
आई होली, आई होली
मचा अब मस्ती का हुडदंग
कि आओ होली खेलें संग!

--रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

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