भरोसा इस क़दर मैंने तुम्हारे प्यार पर रक्खा शरारों पर चला बेख़ौफ़, सर तलवार पर रक्खा
यक़ीनन मैं तुम्हारे घर की पुख़्ता नींव हो जाता मगर तुमने मुझे ढहती हुई दीवार पर रक्खा
झुका इतना मेरी दस्तार सर पर ही रही क़ाइम मेरी ख़ुद्दारियो! तुमने मुझे मेयार पर रक्खा
कभी गिन कर नहीं देखे सफ़र में मील के पत्थर नज़र मंज़िल पे रक्खी, हर क़दम रफ़्तार पर रक्खा
किसी का मोतबर होना नहीं है खेल बच्चों का कि अपनी जीत के हर दाँव को भी हार पर रक्खा
- कृष्ण सुकुमार 153-ए/8, सोलानी कुंज, भारतीय प्रौद्योकी संस्थान रुड़की- 247 667 (उत्तराखण्ड)
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