हर इक मकां में जला फिर दिया दिवाली का हर इक तरफ को उजाला हुआ दिवाली का सभी के दिन में समां भा गया दिवाली का किसी के दिल को मजा खुश लगा दिवाली का अजब बहार का है दिन बना दिवाली का।
जहाँ में यारो अजब तरह का है यह त्योहार किसी ने नकद लिया और कोई करे उधार खिलौने खीलों बतासी का गर्म है बाजार हरइक दुकां में चिरागों की हो रही है बहार सभों को फिक्र है अब जा यना दिवाली का।
मिठाइयों की दुकानें लगा के हलवाई पुकारते है कि लाला दिवाली है आई बतासे ले कोई बर्फी किसी ने तुलवाई खिलौने वालों की उनसे ज़ियादा बन आई गोया उन्हो के बां' राज आ गया दिवाली का।
सराफ़ हराम की कौड़ी का जिनका है व्योपार उन्हींने खाया है इस दिन के वास्ते ही उधार कहे है हँसके कर्जख्वाह' से हरइक इक बार दिवाली आई है सब दे चुकायेंगे अय यार खुदा के फ़ज्ल से है आसरा दिवाली का।
मकान लीप के ठिलिया जो कोरी रखवाई जला च्रिराग को कौड़ी के जल्द झनकाई असल जुआरी थे उनमें तो जान सी आई खुशी से कूद उछलकर पुकारे ओ भाई शगून पहले, करो तुम जरा दिवाली का ।
किसी ने घर की हवेली गिरी रखा हारी जो कुछ थी जिन्स मुयस्सर जरा जरा हारी किसी ने चीज किसी की चुरा छुपा हारी किसी ने गठरी पड़ोसन की अपनी ला हारी यह हार जीत का चर्चा पड़ा दिवाली का।
ये बातें सच है न झूठ इनको जानियो यारो नसीहतें है इन्हें मन में ठानियो यारो जहां को जाओ यह किस्सा बखानियो यारो जो जुआरी हो न बुरा, उसका मानियो यारो 'नज़ीर' आप भी है ज्वारिया दिवाली का।
-'नज़ीर' अकबराबादी
|