हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
आज भी खड़ी वो... (काव्य)    Print  
Author:सपना सिंह ( सोनश्री )
 

निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं:

आज भी खड़ी वो...
तोडती पत्थर,
दिखी थी आपको,
क्या पता था,
टूटेगा,
और क्या क्या ?
कविवर,
क्या कहूँ,
वो दिखी थी
रास्ते में आपको,
आज,
जो पढ़ता है,
चला जाता है,
बस उसी रास्ते में ।
जिस कसक ने,
लेखनी चलाई थी,
उस दिन की,
वो कसक तो,
आज भी,
करती हैं विवश।
अफ़सोस,
पर आज भी,
तोडती हैं पत्थर,
वो खड़ी,
उसी रास्ते में ।
पसीने से,
लथपथ रूप उसका,
आज दया नहीं,
लोभ पैदा करता हैं ।
वो तब भी,
मजबूर थी,
आज भी,
है बेबस,
फरक...
बस इतना है,
वो कल,
दिखी थी आपको,
आज,
दिखती है सबको।

- सपना सिंह ( सोनश्री )

#

Poem by Sapana Singh

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश