वंदन कर भारत माता का, गणतंत्र राज्य की बोलो जय । काका का दर्शन प्राप्त करो, सब पाप-ताप हो जाए क्षय ॥
मैं अपनी त्याग-तपस्या से जनगण को मार्ग दिखाता हूँ । है कमी अन्न की इसीलिए चमचम-रसगुल्ले खाता हूँ ॥
गीता से ज्ञान मिला मुझको, मँज गया आत्मा का दर्पण । निर्लिप्त और निष्कामी हूँ, सब कर्म किए प्रभु के अर्पण ॥
आत्मोन्नति के अनुभूत योग, कुछ तुमको आज बताऊँगा । हूँ सत्य-अहिंसा का स्वरूप, जग में प्रकाश फैलाऊँगा ॥
आई स्वराज की बेला तब, 'सेवा-व्रत' हमने धार लिया । दुश्मन भी कहने लगे दोस्त! मैदान आपने मार लिया ॥
जब अंतःकरण हुआ जाग्रत, उसने हमको यों समझाया । आँधी के आम झाड़ मूरख क्षणभंगुर है नश्वर काया ॥
गृहणी ने भृकुटी तान कहा-कुछ अपना भी उद्धार करो । है सदाचार क अर्थ यही तुम सदा एक के चार करो ॥
गुरु भ्रष्टदेव ने सदाचार का गूढ़ भेद यह बतलाया । जो मूल शब्द था सदाचोर, वह सदाचार अब कहलाया ॥
गुरुमंत्र मिला आई अक्ल उपदेश देश को देता मैं । है सारी जनता थर्ड क्लास, एअरकंडीशन नेता मैं ॥
जनता के संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता । पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता ॥
आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ । राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ ॥
ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो । यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो ॥
दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है । इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है ॥
रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ । यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ ॥
ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए । भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए ॥
अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो । जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो ॥
-काका हाथरस्सी
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