हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
जीवन का राग (काव्य)    Print  
Author:आराधना झा श्रीवास्तव
 

जीवन का ये जो राग है
निर्मल है, ये बेदाग़ है,

तुम छेड़ो न इस राग को
मन के इसके बैराग को,

इसे भाव-भाष में तोलो न
ख़ामोश रहो कुछ बोलो न,

मत बाँधों शाब्दिक बंधन में
बहने दो स्वर के स्पंदन में,

ये स्वर भी मुखर न हो जाएँ
मद्धम हों प्रखर न हो जाएँ,

जो बजे नहीं फिर भी सुन लूँ
नादों का ऐसा मैं गुण लूँ,

सुर हो सरगम हो तान हो
पंछी का मीठा गान हो,

न उसमें कोई मिलावट हो
बूँदों की धीमी आहट हो,

किरणें जो आकर छू जाए
जल में तरंग वो बिखराए,

झरना भी धुन में बहता है
दरिया भी कुछ तो कहता है,

ये पर्वत नदियाँ गाती हैं 
जीवन का राग सुनाती हैं,

हौले से हवा से टकराएँ
पत्तों के झुरमुट भी गाएँ,

मिल जाएँ गले डाली-डाली
झूमें वन की ये हरियाली,

सूखे पत्ते भी चिल्लाएँ
पैरों के नीचे जब आएँ,

पीड़ा से मन जब हो अधीर
पत्थर हृदय से फूटे नीर,

जड़-चेतन सब ही गाते हैं
संगीत की धुन बिखराते हैं,

साँसें भी धुन पर चलती हैं
दिल में धड़कनें मचलती है,

नवजात भी सुर में रोता है
मन में संगीत संजोता है,

माँ की लोरी, माँ का दुलार
संगीत से चलता ये संसार,

संताप का भी होता आलाप
सिसकी भरी आहों का जाप,

रूँधता गला कुछ फँसा-फँसा
मृत्यु के मौन में शोक बसा,

ताप-दग्ध हृदय का विषाद
अंतर्मन से करता संवाद,

है कहो, कहाँ नहीं सुनते राग
लय-ताल लिए जलती है आग,

है शून्य में भी संगीत बसा
है कण-कण में ये रचा-बसा,

गाए धरती और गाए व्योम
निर्वात में गूँजे ओम-ओम।

-आराधना झा श्रीवास्तव, सिंगापुर

वीडियो प्रस्तुति का यूट्यूब लिंक  
https://youtu.be/M7UNuZ3pTy0

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