देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।
आखिर मैं हूँ कौन? (काव्य)    Print  
Author:डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड
 

एक मानव...
नहीं।
मुझे तो धीरे-धीरे
मानवता के सभी मूल्य
भूलते जा रहे हैं।

एक पुरूष...
बिल्कुल नहीं।
अपना पुरूषत्व 
दिखाने की होड़ में
महिलाओं को 
अपनी हवस बनाने
की मेरी आदत
मुझ पर हावी होती जा रही है।

एक नेता...
वो भी नहीं।
मुझे तो अपनी पार्टी
को संभालने से ही 
फुर्सत नहीं,
अपने अस्तित्व के बारे में 
सोचने की जुर्रत भी कैसे कर लूँ।

एक महिला...
वो तो कदाचित नहीं।
अपनी अस्मिता को
संभाले रखने की जंग में 
स्वयं को सुरक्षित बनाए 
रखने की चाह में
बिना स्वयं को लुटाए
कल का सबेरा देखने की 
राह में ही मैं इतना खो चुकी हूँ
कि 'मैं कौन हूँ'
यह सोचने की तो 
फुरसत ही नहीं मिली मुझे
कि आखिर मैं हूँ कौन
कौन हूँ मैं?

-डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड 

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश