परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
मरा हूँ हज़ार मरण (काव्य)    Print  
Author:सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala'
 

मरा हूँ हज़ार मरण 
पाई तब चरण-शरण। 
फैला जो तिमिर-जाल 
कट-कटकर रहा काल, 

अँसुओं के अंशुमाल, 
पड़े अमित सिताभरण। 

जल-कलकल-नाद बढ़ा, 
अंतर्हित हर्ष कढ़ा, 
विश्व उसी को उमड़ा, 
हुए चारु-करण सरण। 

-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

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