हिंदुस्तान की भाषा हिंदी है और उसका दृश्यरूप या उसकी लिपि सर्वगुणकारी नागरी ही है। - गोपाललाल खत्री।
प्रवासी भारतीय तू... | कविता (काव्य)    Print  
Author:डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड
 

प्रवासी भारतीय तू
अपनी पैतृक जड़ों से यूं जुड़ तू
भेड़ बकरी की तरह
मत कर अंधानुकरण यूँ..
अदम्य साहस, समर्पण, धैर्य से
लिख अपनी नई दास्तां तू..
प्रवासी भारतीय तू...

किसी भौगोलिक सीमा में
न बंध यूँ
नई चेतना, नई प्रेरणा, नया संकल्प
ले अब तू...
नव निर्माण नव प्रकाश का
ध्वजा वाहक बन तू...
प्रवासी भारतीय तू...

ले शपथ...
तन मन धन से भारतीय भाषा
भारतीय संस्कृति का
उन्नायक बनेगा तू
कर शपथ...
वैश्वीकरण व वसुदेव कुटुंबकम का
पाठ पढ़ेगा व पढ़वाएगा तू..
ले शपथ...

रास्ते कठिन भी हों तो क्या
अपने अथक सहयोग से
कर नित नए प्रयोग
एक दो दिन नहीं
पूरे साल ही बन जीवंत उदाहरण
अपनी नई कहानी अपनी जुबानी
का कहीं नव निर्माण करेगा तू..

ले शपथ...
आने वाली नई पीढ़ी को
भारतीय संस्कृति की
जीती जगती यह अमूल्य धरोहर
उपहार में देगा तू
ले शपथ..
कहीं देश के सम्मान में
अपने कर्तव्य व ऊँचे मानदण्डों से
नींव का पत्थर बनेगा तू
कर शपथ..
प्रवासी भारतीय तू
अपनी पैतृक जड़ों से
यूँ जुड़ तू...

-डॉ॰ सुनीता शर्मा
 ऑकलैंड, न्यूज़ीलैंड
 ई-मेल: adorable_sunita@hotmail.com

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें