मैं पीड़ा की पर्ण कुटी में पीर पुराण भरी गाथा हूँ गिरमिटिया बन सात समंदर पार गया वह व्यथा कथा हूँ।
आकर्षण कुछ पाने भर का अतल जलधि के पार ले गया सिक्के चंद पेट की ज्वाला मेरा सुख संसार ले गया। देश मेरा घर आँगन छूटा अंतर्मन की व्यथा कथा हूँ पीर पुराण भरी गाथा हूँ।
कलुषित पल था जब पग पहला था जहाज़ में धरा गया उस पल की कालिख से था सारा जीवन रंगा गया। अत्याचारों की बेड़ी से रोम-रोम अब बंधा गुँथा हूँ मैं पीड़ा की पर्ण कुटी में पीर पुराण भरी गाथा हूँ।
-डॉ मृदुल कीर्ति ऑस्ट्रेलिया |