वह आता -- दो टूक कलेजे के करता-- पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी-भर दाने को -- भूख मिटाने को मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलाता -- दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये, बायें से वे मलते हुए पेट को चलते, और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाये। भूख से सूख होंठ जब जाते दाता भाग्य-विधाता से क्या पाते? घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए।
-निराला
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